नई दिल्ली (हमारा वतन) माघ पूर्णिमा 5 फरवरी को है। संपूर्ण भारत में, विशेषकर प्रयागराज में गंगा स्नान के लिए इस ठंड में भी लाखों लोग आते हैं। आस्थावादियों को इस दिन का सालभर से इंतजार रहता है। उनका यह इंतजार पूरा होने को है। खत्म इसलिए नहीं, क्योंकि सनातन मान्यता के अनुसार कोई चीज खत्म नहीं होती, बस अपना रूप बदलती है। 84 लाख योनियों की अवधारणा इसकी पुष्टि करती है। और फिर यहां तो रूप भी नहीं बदल रहा है।
यह एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा के बीच की यात्रा है। पौष से माघ पूर्णिमा। यह यात्रा के आरंभ होने से उसके पूर्ण होने की यात्रा है यानी माघ प्रतिपदा से माघ पूर्णिमा की। भौतिकता से अध्यात्म की यात्रा। सदियों से इस दिन के साक्षी होते आए हैं, वे हजारों-लाखों लोग, जो प्रयागराज में गंगा के तट पर कल्पवासी होते हैं। यह कल्पवास की पूर्णता का दिन है।
हमारी संस्कृति की यही तो विशेषता है कि तमाम तरह के भोगों के बीच व्यक्ति को योगी होने का भी अवसर देती है। माघ का महीना ऐसा ही अवसर है। लेकिन बहुत ही विचित्र और अद्भुत। साधना के लिए वन में कठोर तप नहीं, सिर्फ सूर्योदय से पूर्व स्नान। गंगाजी में स्नान हो जाए तो अच्छा। पूरे माह हो जाए तो बहुत अच्छा वरना सिर्फ एक दिन माघ पूर्णिमा पर ही गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष की साधना का फल मिल जाता है। यह भी न हो पाए तो घर में पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लो तो वह भी अच्छा। इतना भी नहीं हो पा रहा है, तो गंगाजल के छींटे मार लो। और यह भी नहीं तो मानसिक स्नान की भी व्यवस्था है। यानी धर्म आपकी सुविधा का पूरा ध्यान रख रहा है। कितना उदार है हमारा धर्म और कितने व्यावहारिक हैं हमारे धार्मिक विश्वास।
हमारे वैदिक ऋषि इस बात को जानते थे कि मन की शुद्धि के साथ-साथ तन की शुद्धि भी बहुत जरूरी है। क्योंकि गंदे पात्र में रखी हुई अच्छी वस्तु भी खराब हो जाती है इसलिए मन को रखनेवाले तन रूपी पात्र का भी साफ रहना जरूरी है और यों शुरू हुई स्नान की प्रथा। पौराणिक कथाएं कहती हैं, इस दिन भगवान विष्णु का वास गंगा में होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता भी प्रयाग में गंगा स्नान के लिए आते हैं। गंगा यानी मां। सृष्टि के पालक विष्णु यानी पिता। यह एक पिता के घर आने का भी दिन है। जिस प्रकार एक व्यक्ति दिनभर काम करने के बाद अपने घर लौटता है, उसी प्रकार सृष्टि के कार्यों में व्यस्त श्रीहरि के यह घर लौटने का दिन है। अपने परिवार के पास। पिता जब घर आता है तो परिवार में सभी के लिए कुछ-न-कुछ उपहार भी जरूर लाता है। सुख-समृद्धि, आरोग्यता और मोक्ष-प्राप्ति ऐसे ही उपहार हैं।
हमारे पर्व और धार्मिक मेले दान से भी जुड़े हैं। इसके पीछे भावना है कि हमें अपनी खुशियों को आपस में बांटना चाहिए। माघ पूर्णिमा के दिन ललिता जयंती भी मनाई जाती है। दस महाविद्याओं में ये तीसरी महाविद्या हैं। इन्हें त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन महान संत गुरु रविदास का जन्म हुआ था। उन्होंने ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ कहते हुए मन की शुद्धता पर जोर दिया। माघ पूर्णिमा के दिन का बौद्ध धर्म माननेवालों के लिए भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि महात्मा बुद्ध ने इसी दिन अपनी आसन्न मृत्यु की घोषणा की थी।
रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी
जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
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