झुंझनू (हमारा वतन) देशभर में रावण दहन की परंपरा है लेकिन झुंझनू जिले के उदयपुरवाटी कस्बे में रावण के अंत की अनोखी परंपरा है। मेवाड़ क्षेत्र में यहां दशहरे के दिन रावण के पुतले के साथ उसकी सेना पर बंदूकों से अंधाधुंध गोलियां बरसाई जाती हैं। पहले सेना पर गोलियां बरसाकर उन्हें खत्म किया जाता है। फिर मशाल बाण से रावण पर गोलियां बरसाई जाती है, उसके बाद पुतले का दहन किया जाता है।
125 साल से चली आ रही है परंपरा – रावण पर बंदूक से गोलियां बरसाने की परंपरा करीब 125 साल से चली आ रही है। यह परंपरा उदयपुरवाटी के जमात क्षेत्र में बसे दादूपंथी समाज के लोग निभाते हैं। एक अलग तरीके से रावण के अंत को उदयपुरवाटी ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों से भी हजारों लोग देखने आते हैं।
होते हैं विभिन्न कार्यक्रम – उदयपुरवाटी में नवरात्रि में कलश स्थापना के साथ ही दादूपंथियों का दशहरा उत्सव शुरू हो जाता है। पहले दादूपंथ समाज के लोग जमात स्कूल में स्थित बालाजी महाराज के मंदिर में ध्वज फहराकर महोत्सव की शुरुआत करते हैं। यहां नौ दिन में विभिन्न प्रकार के आयोजन होते हैं। दादू मंदिर में दादूवाणी के अखंड पाठ होते हैं। नवरात्र के पहले दिन परंपरागत तरीके से चांदमारी क्षेत्र में बंदूकों से रिहर्सल की जाती है। इसके बाद शस्त्र पूजन और कथा प्रवचन होते हैं। ऐसे ही कई कार्यक्रम किए जाते हैं।
नौ दिन रावण पर गोली चलाने का किया जाता है अभ्यास – उदयपुरवाटी में रावण पर गोली से निशाने लगाने की नौ दिन अभ्यास किया जाता है। फिर दशहरे के दिन मां दुर्गा का हवन किया जाता है। फिर शस्त्रों की पूजा के बाद शाम को लोग जुलूस निकालते हैं। जुलूस रावण दहन स्थल नांगल नदी पर पहुंचती है।
मिट्टी के मटकों की बनाई जाती है सेना – रावण की जो सेना होती है, वो मिट्टी के मटके से बने होते हैं। सफेद रंग से पेंट कर उन पर आंखें और मुंह बनाए जाते हैं। फिर इन मटकों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है। ऐसें में मटकों से बनी सेना रावण के दोनों तरफ बिछी होती है। यहां पहले सेना और फिर रावण को गोलियों को छलनी किया जाता है।
रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी
जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
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