जयपुर (हमारा वतन) राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और प्रचारित करने के उद्देश्य से जयपुर के अल्बर्ट हॉल पर में शुक्रवार को रंगारंग सांस्कृतिक संध्या कल्चर डायरीज के छठे एपिसोड का आयोजन हुआ। उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी के प्रयासों से ‘कल्चरल डायरीज’ के तहत हुए इस कार्यक्रम में हाड़ौती अंचल की पारंपरिक लोक कलाओं का भव्य मंचन हुआ। यह सुखद संयोग था कि आज अल्बर्ट हॉल का 139वां स्थापना दिवस भी था, जिससे इस आयोजन का महत्व और बढ़ गया। हाड़ौती के लोक कलाकारों ने अपने रंग में ढूंढ़ाढ को रंग दिया। देश-विदेश से आए पर्यटकों और स्थानीय दर्शकों ने बड़ी संख्या में शिरकत कर कलाकारों की प्रस्तुतियों की सराहना की, जिससे पूरे आयोजन में उत्साह और उमंग की लहर दौड़ गई।
सांझ ढलते ही मंच पर एक के बाद एक मनमोहक प्रस्तुतियां शुरू हुईं, जिनमें हाड़ौती क्षेत्र की समृद्ध लोक कलाओं ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। चकरी नृत्य में रूपसिंह चाचोड़ा (छबड़ा) और उनके दल ने जब नत्य करती महिलाओं घूमते चक्रों के साथ ढोल-मंजीरे की ताल मिलाई, तो पूरा माहौल लोक रंगों में रंग गया। अशोक कश्यप (झालावाड़) और उनके दल ने डंडा बिंदौरी नृत्य के जरिए ऊर्जा, एकता और परंपरा का प्रतीक नृत्य प्रस्तुत किया। इन लोक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को पूरी तरह मोहित कर लिया और बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी।
इसके बाद हरिकेश सिंह (शाहबाद, बारां) और उनके दल ने सहरिया नृत्य की प्रस्तुति से दीपावली और होली के उल्लास को जीवंत किया, जंगल और इंसान के रिश्तों नृत्यों के साथ दर्शाते ईश वंदना ने आदि परम्पराओं को साकार किया। सहरिया नृत्य के जरिए लोक कलाकारों ने दर्शकों को भावविभोर करते हुए भरपूर दाद लूटी।
वहीं झालावाड़ के जुगल चौधरी और उनके दल ने कानगवली नृत्य के माध्यम से पारंपरिक मान्यताओं की झलक प्रस्तुत की। वहीं कोटा के कुणाल गंधर्व के नेतृत्व में हुए भवाई नृत्य में इस बार अनूठा प्रयोग किया। घड़े के साथ व साइकिल की रिम के साथ तो भवाई नृत्य तो सभी ने देखा होगा, इस बार बैलगाड़ी के चक्के साथ कुशल नृतक ने शारीरिक संचालन व तालमेल का रोमांचारी प्रदर्शन किया।
विनीता चौहान (कोटा) के निर्देशन में हुए बिंदौरी नृत्य ने शादी की बारात के उल्लास को मंच पर जीवंत किया। गौरतलब है कि उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की पहल पर राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा नवाचारों के क्रम में शुरू की गई ‘कल्चरल डायरीज’ पारंपरिक लोक कलाकारों को मंच प्रदान करते हुए राज्य की सांस्कृतिक विरासत को नई पहचान देने का कार्य कर रही है। अल्बर्ट हॉल में आयोजित यह सांस्कृतिक संध्या न केवल 139वें स्थापना दिवस का उत्सव थी, बल्कि राजस्थान की समृद्ध लोक कला और सांस्कृतिक पर्यटन को नई दिशा देने का सशक्त प्रयास भी सिद्ध हुई। ‘कल्चरल डायरीज’ जैसी पहल से प्रदेश की पारंपरिक लोक विधाओं का संरक्षण और प्रचार-प्रसार सुनिश्चित हो रहा है, जिससे आने वाले समय में राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर व्यापक पहचान मिलेगी। विभाग द्वारा आगामी कार्यक्रम में शनिवार को पद्मश्री से सम्मानित लोकगायक गनी बंधुओं की प्रस्तुति होगी, जिन्होंने राजस्थान की मांड गायन को नए सिरे से परिभाषित किया है।
रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी