जयपुर (हमारा वतन) राजस्थान में मायावती ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है। अलवर से फजल हुसैन को उतारकर कांग्रेस के सियासी समीकरण गड़ब़ड़ा दिए है। अलवर से केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव बीजेपी के प्रत्याशी है। जबकि कांग्रेस ने ललित यादव को टिकट दिया है। अलवर में अल्पसंख्यक बहुतायत है। ऐसे में मायवाती ने फजल हुसैन को टिकट देकर कांग्रेस को टेंशन दे दी है।
जानकरी के लिए आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा प्रत्याशी इमरान खान ने 50 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया था। बीएसपी ने इस बार भी कांग्रेस को घेरने के लिए प्लान बनाया है। इसके तहत कांग्रेस के प्रदेश महासचिव फजल हुसैन को टिकट दे दिया है। फजल हुसैन की बहन जाहिदा खान मंत्री थी। फजल हुसैन तैय्यब हुसैन के बेटे है। जिनका मेवात के इलाके में खासा असर माना जाता है। तैय्यब हुसैन हरियाणा और राजस्थान में मंत्री रहें है। ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि मायावती जानबूझकर ऐसे प्रत्याशी का चयन कर रही है जिससे कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो। बसपा ने जालौर-सिरोही से लाल सिंह राठौड़, भरतपुर से इंजीनियर अंजला औऱ कोटा से भीम सिंह कुंतल को टिकट दिया है। जबकि अलवर से फजल हुसैन के टिकट दिया है।
राजनितिक जानकारों का कहना है कि बसपा प्रत्याशी कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते है। क्योंकि आमतौर पर देखा गया है कि बीजेपी का वोटर टूटता नहीं है। जबकि कांग्रेस का वोटर छिटक जाता है। राजस्थान में अल्पसंख्यक और दलित कांग्रेस को वोट माना जाता है। ऐसे में मायावती का फोकस भी दलित और अल्पसंख्यक है। यही वोट कांग्रेस का माना जाता है। जानकारों का कहना है कि मायावती सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही पहुंचा सकती है। मायावती इस बात से भी नाराज है कि गहलोत ने बसपा से 6 विधायकों को तोड़ा।
बहुजन समाज पार्टी हर बार चुनाव पूरे मन से लड़ती है लेकिन उसके विधायक जीतने के बाद पार्टी के साथ टिकते नहीं हैं | मिसाल के तौर पर अगर देखें तो 2018 में पार्टी ने न सिर्फ चुनाव लड़ा बल्कि पार्टी के 6 विधायक जीत कर सदन भी पहुंचे,लेकिन जीत के बाद बसपा के सभी विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2008 में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था, जब बसपा के छह विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कांग्रेस और भाजपा इस फिराक में हैं कि बसपा के नेताओं को तोड़कर उसके वोट बैंक में सेंध लगाई जाए। लेकिन मायावती की रणनीति के आगे कांग्रेस का यह दांव कारगर साबित नहीं हो पा रहा है।