पटाखा उद्योग पर मंडरा रहे संकट के बादल, प्रतिबंध से छिन सकता है लाखों लोगों का रोजगार

चेन्नई (हमारा वतन) देश में इस बार दीपावली का पर्व अगले महीने मनाया जाएगा। रोशनी के इस पर्व पर पटाखा उद्योग एक बार फिर असमंजस में है। पटाखा उद्योग इस बात को लेकर परेशानी में है कि क्या इस बार उनकी दीवाली रोशन होगी या फिर पिछले कुछ सालों की तरह, इस बार भी उनकी दीवाली अंधकारमय होने वाली है।

पटाखा उद्योग पर छाया संकट – दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से पटाखा उद्योग एक जगमगाती उज्ज्वल दीवाली की उम्मीद लगाए हुए बैठा है। इस साल दिवाली अगले महीने मनाई जाएगी, लेकिन पटाखा उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि प्रतिबंध और कोविड महामारी का सीधा असर उन पर पड़ रहा है। तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के शिवकाशी में आतिशबाजी का उत्पादन अभी भी शुरू नहीं हुआ है, जबकि रोशनी के त्योहार में अभी एक महीना बाकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने लगया है प्रतिबंध – सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में पटाखों के निर्माण में बेरियम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था और 2021 में इसकी पुन: पुष्टि की गई थी। देश के पटाखा केंद्र शिवकाशी में आतिशबाजी उद्योग को एक कठिन स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें 1,000 संगठित इकाइयों में लगभग तीन लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। शिवकाशी फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष ए. मुरली ने आईएएनएस को बताया कि मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अदालत ने पहले कहा था कि अंतिम सुनवाई जून 2022 में होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।

प्रतिबंध पर उठाए सवाल – मुरली ने कहा कि कोर्ट द्वारा बेरियम पर लगाया गया प्रतिबंध निराधार है। प्रदूषण के नाम पर पर्यावरणविदों के शोर-शराबे के परिणामस्वरूप हमें निशाना बनाया जा रहा है। बेरियम का इस्तेमाल विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाओं में अन्य क्षेत्रों द्वारा भी उपयोग किया जाता है। मुरली ने दावा किया कि हम कमजोर विरोधी थे और हमें बलि का बकरा बनाया गया है। मुरली ने कहा बेरियम अधिकांश आतिशबाजी के लिए मुख्य ऑक्सीडाइजर है और इसके बिना साधारण फुलझड़ियां नहीं बनाई जा सकती हैं।

पटाखों के उत्पादन में भारी कमी – उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बाद कारखाने 50 प्रतिशत क्षमता पर चल रहे हैं और पटाखों के उत्पादन में 50 से 60 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने बताया कि हमारे पास कंपनियों का एक समूह है, जिसमें 450 से 500 कर्मचारी कार्यरत हैं और प्रतिबंध के बाद केवल 200 लोगों को ही रोजगार मिल पाया है। शिवकाशी में पटाखा कारखानों का उत्पादन मूल्य लगभग 2,500 करोड़ रुपये है, जबकि खुदरा बिक्री लगभग 6,000 करोड़ रुपये होती है।

रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी 

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