रुद्र के पांचवें अवतार काल भैरव देखने में भयंकर लेकिन भय को दूर करने वाले हैं। इनके और भी कई नाम हैं, जैसे— दंडपाणी, स्वस्वा, भैरवीवल्लभ, दंडधारि, भैरवनाथ, बटुकनाथ आदि। भैरव उपासना की दो शाखाएं बटुक भैरव तथा काल भैरव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
मार्गशीर्ष की कृष्ण पक्ष अष्टमी कालाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। इसे काल भैरव जयंती भी कहते हैं। हिंदू धर्म में भैरव, शिव के पांचवें अवतार माने गए हैं। भैरव का अर्थ है, जो देखने में भयंकर है, लेकिन भय से रक्षा भी करता है। शैव धर्म में भैरव, शिव के उग्र अवतार माने गए हैं। बौद्ध धर्म में इन्हें उग्र वशीकरण माना जाता है। श्रीलंका, नेपाल और तिब्बती बौद्ध धर्म में भी यह विशेष रूप से पूजे जाते हैं। दिल्ली में बटुक भैरव का पांडवकालीन और उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण ऐतिहासिक और तांत्रिक है। पुराणों में भैरवनाथ की उत्पत्ति के अलग-अलग मत हैं। शिव पुराण के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य ने भगवान शिव के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस किया। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
अन्य पुराण के मतानुसार भगवान ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूप-सज्जा देखकर शिव का अपमान किया। अति होने पर जब शिव क्रोधित हुए तो उनके शरीर से एक विशाल दंडकारी काया प्रकट हुई, जो ब्रह्मा के संहार के लिए आगे बढ़ी। इससे ब्रह्मा भयभीत हो गए, तब भगवान शिव द्वारा ही वह काया शांत हुई। इस काया के रुद्र रूप की वजह से उसे महाभैरव नाम की उपाधि मिली। इन्हें शिव ने अपनी पुरी काशी का नगरपाल नियुक्त किया।
एक मत ऐसा भी है कि जब ब्रह्मा जी पांचवें वेद की रचना कर रहे थे, तब सभी देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से वार्तालाप किया, परंतु ब्रह्मा जी के न समझने पर महाकाल से उग्र प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए। और उन्होंने नाखून के प्रहार से ब्रह्मा जी का पांचवां मुख काट दिया। इस पर भैरव को ब्रह्म हत्या का दोष लगा। मार्गशीर्ष की कृष्ण पक्ष अष्टमी को काल भैरव जयंती के नाम से मनाए जाने की वजह यह है कि इसी दिन भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के अहंकार को नष्ट किया था। इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत-से लोग भैरव की उपासना करते हैं। जब भगवान शिव ने अपने अंश से भैरव को प्रकट किया, तब उन्होंने मां पार्वती से भी एक शक्ति उत्पन्न करने को कहा। तब मां पार्वती ने अपने अंश से देवी भैरवी को प्रकट किया, जो शिव के अवतार भैरव की पत्नी हैं। भैरव का वाहन काले रंग का कुत्ता है।
तंत्र शास्त्र में अष्ट भैरव के विभिन्न रूपों का उल्लेख है। असितांग भैरव, चंड भैरव, रूरू भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव। कालांतर में भैरव उपासना की दो शाखाएं बटुक भैरव तथा काल भैरव के नाम से प्रसिद्ध हुईं। बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय दान देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं, तो वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंड नायक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
तारा ज्योतिष साधना केंद्र के अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता – पंडित रविंद्र आचार्य
रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी
जीवन अनमोल है , इसे आत्महत्या कर नष्ट नहीं करें !
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