जयपुर (हमारा वतन) फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय भविष्यवक्ता पंडित रविन्द्राचार्य के अनुसार इस वर्ष होलिका दहन 24 मार्च रविवार को रात्रि व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को भद्रा काल के बाद अर्थात रात्रि 10:28 के बाद किया जाना शास्त्र सम्मत होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 9:23 बजे से लगेगी जो की संपूर्ण रात्रि रहेगी और 25 मार्च को दिन के 11:31 पर समाप्त हो जायेगी। इसलिए होलिका दहन 24 को ही होगा। काशी की परम्परा के अनुसार होलिका दहन की सुबह होलिकोत्सव, रंगोत्सव मनाया जाता है।
सनातन धर्म में होलिका दहन का विशेष महत्व बताया जाता है। शनि की साढ़े साती वालों को भस्म स्नान करने के साथ ही घरों पर ढुंढिशा राक्षसी का पूजन करने की सलाह दी जाती है। साथ ही पिंगल व काल मुक्त संवत्सर के अनुसार विशेष राशियों के लोगो को होलिका की अग्नि की पहली लपट में आसपास न रहने की सलाह दी गई है। होलिका की अग्नि में लोगो को अपने ऊपर से काले तिलों या नारियल को उल्टा उतारकर जलाने से भय, बाधाएं दूर होती है। वहीं ऊं होलिकाए नम: के उच्चारण संग ढुंढिशा राक्षसी का पूजन कर होलिका की लाई जाने वाली अग्नि में उसे जला देना चाहिए। वहीं होलिका की अग्नि के परिक्रमा करने से पाप, ताप व संताप मिटते है। यदि किसी के ऊपर शनि की साढ़ेसाती हो तो वह होलिका की आग ठंडी हो जाने के बाद उससे भस्म स्नान करने से लाभ मिलता है।
होलिका दहन की विधि : –
होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठकर कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें। रोली चावल से तिलक कर घर पर बने मिष्ठान और देसी घी की अठावरी का भोग लगाकर जल अर्पित कर होलिका और भक्त प्रहलाद की जय का उद्घोष करें। पूजन के बाद हाथ में शुद्ध जल का लोटा लेकर परिक्रमा कर अर्घ्य दें। होलिका में आहुति के लिए कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य एवं नई फसल का कुछ भाग प्रयोग करें सप्तधान्य में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि वस्तुएं आदि।