पटना (हमारा वतन) बिहार में एक बार फिर लंपी वायरस ने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। मॉनसून की बारिश के बाद मच्छरों की संख्या बढ़ने से इस बीमारी से ग्रसित पशुओं की संख्या में इजाफा हुआ है। कई जिलों से इसकी शिकायत आने के बाद पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने 108 संक्रमित पशुओं का सैंपल जांच के लिए भोपाल और कोलकाता भेजा है।
विभाग का कहना है कि सैंपल की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही लंपी स्किन सदृश्य बीमारी की पुष्टि की जा सकती है। इस बीमारी से मवेशी के बीमार होने की शिकायत एक दर्जन जिलों से आई है। इसमें नालंदा, सहरसा, मधुबनी, बेगूसराय, छपरा, सीवान, सुपौल, गया, औरंगाबाद, नवादा, कैमूर, सीतामढ़ी आदि शामिल हैं।
लंपी के लक्षण की शिकायत आने के बाद पशु चिकित्सक बीमार मवेशी का इलाज शुरू कर देते हैं। नि:शुल्क दवा वितरण के साथ ही पशुपालकों को सलाह दी जा रही है। मुख्यालय से टीम भेजकर ऐसे मवेशी का सैंपल भी लिया जा रहा है। जांच के लिए सैंपल भोपाल स्थित लैब भेजे जा रहे हैं।
पशु चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे लक्षण वाले पशुओं का इलाज मानक के अनुसार किया जा रहा है। इससे बचाव के लिए जनवरी 2023 से टीकाकरण जारी है। जिन पशुओं को टीका लग चुका है, उनके गंभीर होने का खतरा नहीं है। पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के अनुसार अब तक एक करोड़ 36 लाख पशुओं को टीका दिया जा चुका है। अब भी टीकाकरण जारी है।
लंपी वायरस के संक्रमण से ठीक होने में मवेशी को दो से तीन हफ्ते लग जाते हैं। संक्रमित होने के बाद 5 से 7 दिन तक एंटी-बायोटिक देकर इलाज किया जाता है। आयुर्वेदिक और होमियोपैथी इलाज ज्यादा कारगर है। इसके अलावा इसकी वैक्सीन भी लगाई जाती है। पिछले साल भी लंपी वायरस फैला था। घबराने की जरूरत नहीं है।
लंपी के लक्षण –
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संक्रमित मवेशी को हलका बुखार रहता है |
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त्वचा पर छोटी-छोटी गाठें बन जाती हैं |
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मुंह से लार अधिक निकलता है, आंख-नाक से पानी बहता है |
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पशुओं के पैरों में सूजन रहती है |
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संक्रमित पशु के दूध उत्पादन में गिरावट आ जाती है |
लंपी बीमारी की रोकथाम और बचाव के उपाय –
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पशुओं के परजीवी कीट, मक्खी और मच्छर आदि को पनपने न दें |
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पशुओं के रहने की जगह को साफ-सुथरा रखें |
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संक्रमित पशु को झुंड से अलग रखें ताकि संक्रमण न फैले |
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जहां वायरस का संकमण है, वहां स्वस्थ पशु को न जाने दें, |
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वायरस के लक्षण दिखें तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें |
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स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण जरूर कराएं |
प्रतिरोधक क्षमता के लिए रोगी पशु को संतुलित आहार दें – रोगी पशु को संतुलित आहार, हरा चारा, दलिया, गुड़, आदि खिलाएं, ताकि पशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो सके। पशु बाड़े या आवास के प्रवेश पर चूने की दो फुट चौड़ी पट्टी बनाएं। यह बीमारी पशुओं से मनुष्य में नहीं फैलती है। संक्रमित गाय का दूध कम से कम दो मिनट तक उबाल कर ही सेवन किया जाए।
रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी
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