रिश्तों का सार अहसान में नहीं अहसास में है – विशेष लेख

जयपुर (हमारा वतन) भारत जैसे देश में रिश्तों को अधिक तरजीह दी जाती है, लेकिन अब देखा जा रहा है कि यहाँ भी रिश्ते सिमट रहे हैं, साथ में उनके स्रोत भी सूख रहे हैं। जिसके चलते बच्चे भूमंडलीकरण वाले इस दौर में अपने माँ-बाप तक ही सिमट कर रह गये हैं। यह सही नहीं है, क्योंकि बच्चों के चरित्र-निर्माण से लेकर सामाजिक-व्यवस्था, सभ्यता, मूल्यों और परंपरागत रीति-रिवाजों के प्रचार प्रसार में जो भूमिका दादी-नानी व रिश्तों की समझ की है, वह किसी और की नहीं हो सकती।

आज के बच्चों को अब यह कौन समझाएगा कि घर के चौक में आने वाला हर व्यक्ति तथा पास-पड़ोस व चौपाल का हर सदस्य एक रिश्तेदार होता था, जबकि वो तो अपने निकट के रिश्तेदारों से भी अनभिज्ञ है, रही-सही कसर मोबाइल व इंटरनेट की दुनियाँ ने पूरी कर दी है, जिसने एक ही घर में सबको एकाकी बना दिया है, इसलिए अब यह ज़रूरी हो गया है कि हम हमारे बच्चों को हमारे भूले-बिसरे रिश्तों के मैजिक के बारे में न केवल बताएँ, बल्कि उनसे उन्हें रूबरू भी करवायें, तब जाकर कहीं अटूट संबंधों का एक समृद्ध विज्ञान उदय हो पायेगा।

कई मर्तबा, कई जगह, कई घरों में, यहाँ तक की अपने निजी परिवेश में भी रिश्तों की संकीर्णता का अहसास किया जा सकता है। पता नहीं मेरा यह मानना कोई सार्थकता रखता है या नहीं, यह तो आप लोगों की प्रतिक्रियाओं से ही पता चलेगा, पर देखा यह है कि हम लोग रिश्तों के नज़रिये से एक दोहराव भरा चेहरा व रुख रखते हैं। जो अपेक्षा अपनी बेटी के भावी जीवन के लिए रखते हैं, वही अपेक्षा अपनी बहू के लिए नहीं रख पाते। कार्यस्थल पर जो चिंतन व शुभाशीष अपनी जाति के लोगों के लिए रखते हैं, वही चिंतन व शुभाशीष दूसरी जाति के लोगों के लिए नहीं रख पाते। विकास व लाभ की वर्षा अपने घर में चाहते हैं, जिम्मेदारी व त्याग दूसरों के लिए छोडना चाहते हैं, अर्थात आज हमारे रिश्तों के दर्शन व नज़रियें में समता व सहअस्तित्व के भाव लगभग मृतप्राय है। इसी कारण से भावी पीढ़ी में रिश्तों के सच्चे व पक्के दृष्टिकोणों का बीजारोपण नहीं हो पा रहा है, शायद इसीलिए ही आज के नवजात बच्चे भी तेरा-मेरा करने लग जाते हैं। रिश्तों में सीमांतवादी व संकीर्णताओं के आलम के चलते, क्या हम अपनी भावी पीढ़ी के बच्चों को भगवान का रूप कह पायेगें ?

प्रचलित दशाओं को देखते हुए, अब हमें रिश्तों के परिवेश में समृद्धि व सच्चाई लाने के लिए किसी भी प्रकार का लाॅजिक नहीं, बल्कि जादु की झप्पी वाला मैजिक चाहिए। इसलिए हमें रिश्तों के महत्व पर हर वक़्त अपने विवेक व नेक नीयती का प्रकाश डालते रहना चाहिए। रिश्तों की प्रगाढ़ता के संबंध में हमें सदा इस भाव की नाव में बैठना है कि- हमारे आस-पास के लोग उतने बुरे नहीं हैं, जितना हम उन्हें समझते हैं, अर्थात हमें यह लगातार कोशिश करते रहना चाहिए कि रिश्तों से अज्ञान का अंधेरा कैसे मिटे और उनमें जो रुकावटे हैं, मसलन आसक्ति, लोभ-लालच, अहंकार, शंकाएँ और तनाव आदि कैसे दूर हों ? रिश्तों के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें इनके निर्वहन के पर्यावरण में किसी भी प्रकार की कांच की दीवारों को खड़ा नहीं करना, बल्कि इस प्रकार की दिवारों को तोड़ कर, हमेशा संवाद को बनाए रखना है, वो इसलिए, क्योंकि, बोलने से जाता कुछ नहीं, हाँ पर आता बहुत कुछ हैं, तो फिर आइए, इस बात को केन्द्र में रखकर, आपकों रिश्तों के महत्व से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बोध कथा से रूबरू करवाते हैं।

एक गांव में दो भाई रहा करते थे। दोनों भाई बचपन से ही बड़े आध्यात्मिक और साफ़ दिल के थे, उनके रिश्ते को देखकर पूरा गांव उनकी मिसाल दिया करता था। दोनों भाइयों को अध्यात्म का अच्छा ज्ञान था और वह पूरे गांव में इसे बांटने की कोशिश करते थे। समय बीत रहा था और दोनों का परिवार मिलजुलकर अपना जीवन काट रहे थे। एक दिन अचानक व्यापार को लेकर दोनों भाइयों में झगड़ा हो गया और छोटे भाई ने बड़े भाई को कुछ कटु शब्द बोल दिए। बड़े भाई को भी यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वो भी लड़ने लगा। दोनों की अध्यात्म और साधना की समझ धरी की धरी रह गई। सालों बीत गए दोनों भाइयों ने एक-दूसरे की शक्ल तक नहीं देखी।

कई सालों बाद जब छोटे भाई की बेटी की शादी पक्की हुई, तब सभी गांव वालों ने छोटे भाई को समझाया कि बड़े भाई के बिना शादी संभव कैसे होगी ? तो छोटे भाई को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वह सीधा बड़े भाई के पास पहुंचा। जाते ही वह अपने बड़े भाई के चरणों में गिर गया और अपने किये के लिए माफ मांगने लगा। बड़ा भाई सालों बीत जाने के बाद भी उसके कहे अपशब्दों को भूला नहीं था इसलिए उसने छोटे भाई को माफ नहीं किया और शादी में आने से मना कर दिया। छोटा भाई निराश होकर अपने गुरुजी के पास पहुंचा, ये वही गुरुजी थे, जिनसे ज्ञान प्राप्त कर दोनों भाई अध्यात्म की शरण में आए थे। अगले दिन बड़ा भाई गुरुजी से मिलने पहुंचा तो उन्होंने कल के सारे किस्से के बारे में उससे पूछा। बड़े भाई ने गुस्से में आकर कहा गुरुजी मैं इस बात को कभी नहीं भुला सकता कि उसने मेरा अपमान किया था। गुरुजी ने हंसकर कहा अच्छा मत भुलाना, लेकिन ज़रा यह तो बता कि दस दिन पहले जो मैंने सत्संग किया था, उसमें क्या ज्ञान दिया था ? बेचारा बड़ा भाई सोच में पड़ गया और माफ़ी मांगते हुए बोला उसे याद नहीं, तब गुरुजी ने कहा कि- जब तुम्हें अच्छी बात दस दिन भी याद नहीं रहती, तो बुरी बात इतने सालों तक कैसे याद है ? गुरुजी की बात सुनकर, वह उनके चरणों में गिरकर रोने लगा और उसे एहसास हो चुका था कि वह ग़लत है। वह फ़ौरन अपने अपने छोटे भाई के पास पहुंचा और माफ़ी मांगी, दोनों भाई फिर से साथ-साथ रहने लगे।

इस कहानी में रिश्तों के लिहाज़ से दो सीख निहित है। पहली यह कि यदि आप ख़ुद को आध्यात्मिक मानते हैं तो फिर आपके अंदर ईगो, निराशा और गुस्सा कैसे आ सकता है ? अध्यात्म तो हमारे मन और मस्तिष्क को शांत करने की प्रक्रिया है। इसकी शरण में आने वाला व्यक्ति माफ़ी देता है न कि गुस्सा करता है। दूसरी सीख यह कि जब हम पिछले दिन की अच्छी बात भी याद नहीं रख पाते तो सालों पुरानी बुरी बात पर अपने रिश्ते कैसे खत्म कर सकते हैं ? यदि किसी ने आपका दिल दुखाया है तो आपको तब तक बुरा लगता रहेगा जब तक आप उसके कहे शब्दों को अपनी याद के दायरे में रखेंगे, इसलिए अपने दिमाग़ में उन्हीं बातों को घर बनाने दें, जो आपकी प्रसन्नता का कारण बनती हो, न कि उन्हें, जिन्हें याद कर, आप गुस्से, घृणा और निराशा से घिर जाएं, इसलिए मित्रों रिश्तों की सांझ ढलने से पहले, एक बार फिर एकांत की डगर पकड़ लेना, मन की सारी निराशाओं व कुंठाओं को एक साथ जकड़ लेना, फिर देखना, नज़र के नज़रिए में आपकों अपनी ही सीमाओं का भान होगा, नज़र अंदाज का ज्ञान होगा, अपने से अपनों के मान का गुमान होगा, अंत में, लेकिन अंतिम नहीं, जीवन में एक कुदरती विज्ञान भी होगा, जो हमको यह बताएगा कि- रिश्तों का सार व अपनों का प्यार, अहसान करने में नहीं, बल्कि अहसास करने में होता है, इसलिए रिश्तों के मर्म के लिए, अपनों के धर्म के लिए व निभाने के चरम के लिए, हमारे पास समझदारी का जामण होना बहुत जरूरी है |(ये लेखक के अपने विचार हैं)

लेखक : डाॅ. जितेन्द्र लोढ़ा (स्वतंत्र लेखक, प्रेरक वक़्ता,स्तंभकार व काॅलेज शिक्षा राजस्थान में टीचर एजुकेटर)

रिपोर्ट – राम गोपाल सैनी 

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